मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के मायने!
कांग्रेस की राजनीति और मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश का जो सियासी घटनाक्रम/ड्रामा चल रहा है, वो अचानक पैदा नहीं हुआ है. इसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी,जनता के सामने अब आई है.दरअसल पूरा खेल राज्यसभा सीटों औऱ कांग्रेस के युवा नेताओं की महत्वकांक्षा का है.तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में दिसम्बर 2018 में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने चुनाव जीता. वास्तव में खेल वंही से शुरू हो गया.
(दिसम्बर18 में चुनाव जीतने के बाद)
(दिसम्बर18 में चुनाव जीतने के बाद)
दिसम्बर 18 में चुनाव जीतने के बाद बारी थी, इन राज्यों में मुख्यमंत्री नियुक्त करने की.अध्यक्ष के तौर पर यह कार्य राहुल गांधी का था,लेकिन सोनिया गांधी ने इसमें भरपूर हस्तक्षेप की.नतीजा यह हुआ कि मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों ही राज्यों में सोनिया गांधी ने अपने खास औऱ विश्वासपात्र नेताओं क्रमशः कमलनाथ औऱ अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री चुना.इससे इन राज्यों का युवा नेतृत्व निराश हुआ.ज्योतिरादित्य सिंधिया औऱ सचिन पायलट दोनों का ही अपने राज्यों में अच्छा खासा दबदबा है.पूरी समस्या यंही से शुरू हुई.
लोकसभा चुनाव 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी परम्परागत सीट से चुनाव हार गए.तब सिंधिया को शायद लगा कि कांग्रेस से राज्यसभा चले जायेंगे,लेकिन पिछले कुछ दिनों में मध्यप्रदेश के पुर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजयसिंह का हस्तक्षेप काफी बढ़ गया. सूत्रों के मुताबिक दिग्विजय सिंह, सिंधिया को राज्यसभा भेजने के पक्ष में नहीं है.वर्तमान में उपजी विभिन्न परिस्थितियों की यही जड़ है.
(दैनिक भास्कर, राजस्थान के संपादक का ट्वीट)
26 मार्च को मध्यप्रदेश में 3 सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव होने हैं. सिंधिया के पास यही मौका है कि वह किसी न किसी रूप में सरकार में आए. सिंधिया ने बगावत के सुर अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन करके ही कर दिया था.इसके बाद भी उन्होंने कई दफे कमलनाथ सरकार की आलोचना की.
( फ़ाइल फ़ोटो - ज्योतिरादित्य सिंधिया )
ताजा मामला सिंधिया के कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद औऱ गहरा गया.सिंधिया के इस्तीफा देते ही कांग्रेस ने भी उन्हें पार्टी से निकाल दिया.सिंधिया ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की,जिसमें गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे.वंही सिंधिया के इस्तीफे के बाद उनके समर्थक 19 विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया,जो अभी बेंगलोर में है.अब यह तो तय है, कि मध्यप्रदेश में पुनः बीजेपी सरकार बनायेगी.
सिंधिया को बीजेपी राज्यसभा भेजेगी औऱ मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय भी दिया जाएगा.
(कांग्रेस से ज्योतिरादित्य सिंधिया का त्याग पत्र)
इस पूरे घटनाक्रम से यह तो स्थिति साफ हो गयी कि माँ-बेटे (सोनिया गांधी और राहुल गांधी)के अपने-अपने खेमों में कांग्रेस पूरी बटी हुई है और कांग्रेस में युवा नेताओं को सोनिया गांधी का धड़ा आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा है.इससे पहले महराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा,संजय निरुपम औऱ हरियाणा में अशोक तंवर जैसे नेताओं को कांग्रेस ने दरकिनार कर दिया.
शायद,कांग्रेस में सोनिया गांधी की खुशी के अतिरिक्त कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है.उसी का परिणाम अब पार्टी को भुगतना होगा और भविष्य में इसके औऱ भयावह रूप सामने आएंगे.
फिलहाल तो सिंधिया का मास्टर स्टॉक है, अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वह भाजपा में कितने सफल होंगे,यह तो समय ही बताएगा.
सचिन पारीक
IIMC,NEW DELHI
बेहतरीन विश्लेषण, अच्छी टीप ।।
ReplyDeleteबहुत शानदार विश्लेषण बड़े भाई
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