राजस्थान का सियासी हाल: बीजेपी,कांग्रेस और बेनीवाल
मौसम जाड़े का है लेकिन सियासत ने माहौल को गरम कर दिया है. चुरू व माउंट आबू ही नहीं, इस बार तो प्रदेश का पश्चिमी भाग भी भयंकर ठिठुरन से गुजर रहा है, लेकिन सियासत की गर्मी के आगे जाड़ा फीका है.
मासूम औऱ भोले-भाले राजस्थानी, सरकार चुनकर भूल जाते हैं. फिर पांच साल बाद दो महीने में जो पार्टी लुभा ले, उसे चुन लेते हैं. अधिकतर तो सत्तापक्ष विपक्ष में बैठता है और विपक्षी सत्ता में आते हैं. मतलब 5 साल भाजपा, 5 साल कांग्रेस. यही चलता रहता है क्योंकि इसके अलावा विकल्प भी नहीं है. औऱ निकट भविष्य में कोई विकल्प बनता नजर भी नहीं आ रहा है.
राजस्थान में पार्टियां वही पुरानी है,लेकिन अब नई पीढ़ी औऱ पुरानी पीढ़ी में टकराव बढ़ रहा है. पुराने नेता कुर्सी का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं औऱ नए नेताओं के खून में उबाल है, वे व्यवस्था बदलना चाहते हैं. लेकिन पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र न होने से टकराव की स्थितियां हर समय बनी रहती है. यहां भाजपा और कांग्रेस दोनों की स्थिति एक जैसी है. गहलोत व पायलट का टकराव तो 2018 से देख ही रहें हैं. लेकिन अब भाजपा नेताओं में भी वसुंधरा की स्वामिभक्ति करने की क्षमता नहीं बची है. यहां यह भी स्पष्ट है कि जनता भी वसुंधरा को नकार चुकी है, लेकिन वसुंधरा की गुटबाजी के आगे केंद्रीय नेतृत्व टिक नहीं पाता है. वहीं गहलोत की छवि अभी भी अच्छी है, लेकिन पायलट की महत्वकांक्षाएं भी है. गहलोत एक माहिर राजनेता है और जनप्रिय लोकनेता है.
(फ़ाइल फ़ोटो)
कांग्रेस पार्टी में गहलोत की कद-काठी भी अच्छी है, तो गहलोत को कोई डिगा नहीं सकता.भाजपा ने मध्यप्रदेश में सरकार गिराने के साथ ही राजस्थान में भी प्रयास किया था, लेकिन गहलोत की सूझबूझ औऱ अनुभव के आगे भाजपा ढेर हो गई.
हाल ही में मामला तब गहरा गया जब भाजपा प्रदेशाध्यक्ष का बयान सामने आया कि वसुंधरा ने जिला स्तर पर भाजपा से अलग अपनी टीम बना ली है. पूर्व विधायकों और वर्तमान विधायकों के साथ टीम बनाकर राजे ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है. वसुंधरा राजे को यह बात समझ आ गई है कि 2023 में पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाने वाली है. ऐसे में वसुंधरा राजे स्वयं के मुख्यमंत्री न बनने की स्थिति में भाजपा को नुकसान पहुंचाने की हर संभव कोशिश कर रही है, जिसकी रणनीति 2018 से ही बननी शुरू हो गई थी. वर्तमान में भाजपा के 73 विधायकों में भी अलग-अलग गुट है.जिसमें से एक वसुंधरा गुट औऱ एक प्रदेश भाजपा का गुट है.प्रदेश भाजपा को आगामी विधानसभा चुनावों में होने वाले नुकसान का अंदेशा है,इसीलिए अब खुलकर केंद्रीय नेतृत्व को बातें बता रही है.
भाजपा-कांग्रेस से अलग बेनीवाल हैं,जहां गले इनकी दाल, वहीं होते हैं बेनीवाल. बेनीवाल अपनी ही शर्तों पर चलते हैं. बेनीवाल का बड़ा आरोप यही है कि भाजपा-कांग्रेस औऱ वसुंधरा-गहलोत में साठ-गांठ है,इसी कारण यह 5-5 साल एक-दूसरे का साथ देते हैं. राजस्थान को इनकी साठ-गांठ से मुक्त करना है. हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के वर्तमान में 3 विधायक है तथा वह स्वयं भाजपा के सहयोग से सांसद बन हुए हैं. बेनीवाल से मैं व्यक्तिगत तौर पर दिल्ली संसद में एकबार मिला हूँ. बेनीवाल को अक्सर लोग जातिगत राजीनीति करने वाला मानते हैं लेकिन ऐसा है नहीं. साधारण से साधारण व्यक्ति भी अगर अपने काम से बेनीवाल के पास जाए,तो मुझे विश्वास है कि वह व्यक्ति खाली नहीं लौटेगा. बेनीवाल का क्षेत्र जाट बाहुल्य है शायद इसी कारण उन्हें जातिवादी तमगा मिल गया है.
हाल ही में कृषि कानूनों के विरोध में NDA से अलग होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस में उनका वही मिजाज देखने को मिला. बेनीवाल ने फिर दोहराया कि वे भाजपा के सभी निर्णयों के साथ है कृषि कानूनों के अलावा. बेनीवाल भाजपा में रहना चाहते हैं लेकिन वसुंधरा के साथ नहीं. बेनीवाल का जनाधार सिर्फ पश्चिमी राजस्थान के 5-6 जिलों में है.इस कम जनाधार के कारण उन्हें सत्ता में रहने के लिए मुख्य दलों से गठबंधन करना होगा. कांग्रेस में बेनीवाल जाना नहीं चाहते औऱ भाजपा में वसुंधरा चलने नहीं देती.
कांग्रेस में गहलोत का यह अंतिम कार्यकाल है,इसके बाद पायलट ही राजस्थान के पायलट होंगें. गहलोत की राजनीतिक समझ कई और स्थितियां भी उत्पन्न कर सकती है. वहीं भाजपा में नए नामों की चर्चा में ओम माथुर व गजेंद्र सिंह शेखावत आगे चल रहे हैं. ओम माथुर, ओम बिड़ला व नरेंद्र मोदी तीनों संघ के स्वयंसेवक से लेकर प्रचारक तक एक साथ रहें हैं. ओम बिड़ला के लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद ओम माथुर,नरेंद्र मोदी की दूसरी पसंद है,लेकिन उम्र अधिक है.माथुर,मोदी की कोई बात नहीं टालते.वहीं 2017 में कृषि राज्य मंत्री रहते शेखावत ने भी अपनी छवि केंद्रीय नेतृत्व में बना ली.जलशक्ति मंत्री के तौर पर उनके प्रोजेक्ट बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट ''हर घर नल से जल" व ''स्वच्छ गंगा" भी शेखावत को मिले हुए हैं. जिस पर शेखावत तेजी से काम करते हुए,अपनी रैंकिंग सुधार रहे हैं.
शेखावत का कद इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि उन्होंने गहलोत के बेटे को उनके ही बूथ पर हराया है.गहलोत भी शेखावत पर सीधा हमला करते हैं. संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी के मामले को छोड़ दें तो शेखावत पर कोई गंभीर आरोप भी नहीं है. इसलिए शेखावत मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 2023 में वसुंधरा को दरकिनार करते हुए शेखावत को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाता है या नहीं!
SACHIN PAREEK
Journalist
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