सवालों के घेरे में दिल्ली पुलिस!
दिल्ली हिंसा और कटघरे में पुलिस
24 और 25 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा या यूं कहें कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में दिल्ली पुलिस पूरी तरह से नाकाम हुई.अब लगातार विपक्ष और अन्य लोगों द्वारा दिल्ली पुलिस की भूमिका पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं. लगातार एक ही प्रश्न बना हुआ है कि आखिर दिल्ली पुलिस हिंसा क्यों नहीं रोक सकी?
यह पहला मौका नहीं है, जब दिल्ली पुलिस पर प्रश्न उठ रहे है इससे पहले भी कई मौकों पर दिल्ली पुलिस पर सवालिया निशान लग चुके हैं. गौरतलब है कि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी औऱ जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच हुए विभिन्न तनावों औऱ नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा पर भी दिल्ली पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है.
5 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ नकाबपोश गुंडों ने छात्र-छात्राओं के हॉस्टल में घुसकर मारपीट की. जिसके कई वीडियो सामने आए, जिसमें बाहर से आए लोग छात्रों के साथ मारपीट करते हुए दिखाई दे रहे हैं. जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष और छात्रों ने बताया कि पुलिस विश्वविद्यालय के मेन गेट पर खड़ी थी और यह सब कुछ पहले से तैयारी करके घटना को अंजाम तक पहुंचाया गया. पुलिस ने कार्रवाई के नाम पर अब तक कुछ नहीं किया है और पुलिस की नाकामी का आलम यह है कि डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है.
वहीं जामिया मिलिया इस्लामिया के विद्यार्थियों द्वारा संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन चल रहा था. जिसमें हिंसा भड़की.पुलिस पर आरोप है कि उन्होंने प्रदर्शन कर रहे, विद्यार्थियों के साथ लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों के साथ भी मारपीट की.
हाल ही में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा लोग घायल है. दिल्ली पुलिस ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि अब तक हमने 126 एफ आई आर दर्ज की है और 630 लोगों को गिरफ्तार किया है आगे भी जांच जारी है और हिंसक तत्वों की पहचान कर उन्हें पकड़ा जा रहा है.
दिल्ली पुलिस की लगातार विफलता का कारण पुलिस का खुफिया विभाग भी है.आखिर खुफिया एजेंसियां इतनी भयानक हिंसा की साजिश का पता लगाने में असफल क्यों रही?लोगों के घरों में एक - एक गाड़ी भरे जितने पत्थर कैसे इक्कट्ठा हो गए? पेट्रोल बम, तेजाब से भरे पॉलिथीन औऱ गुलेल कैसे इक्कट्ठा हो गए? इन सभी सवालों के जबाब खुफिया एजेंसियों को देने होंगे.
इन सभी घटनाओं के सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस पर प्रश्न उठता है कि आखिर दिल्ली पुलिस इतनी लेट क्यों हो जाती है?और इतनी ढिलाई से कार्रवाई क्यों होती है? क्या दिल्ली पुलिस की हिंसक तत्वों के साथ कोई मिलीभगत है? या सरकार ने उनके हाथ बांध रखे हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो पुलिस को तुरंत कार्रवाई कर समाज को संदेश देना चाहिए कि पुलिस का मोटो अपराधियों में भय और आमजन की सुरक्षा कायम करने का है.
विवादों में रही दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक 29 फरवरी 2020 को रिटायर हो रहे हैं.उनकी जगह अतिरिक्त प्रभार एसएन श्रीवास्तव को दिया गया है.
लगातार उठ रहे दिल्ली पुलिस पर सवालों का जवाब दिल्ली पुलिस को ही देना है.दिल्ली पुलिस कार्रवाई में देरी ना करें ऐसा भी जनता को विश्वास दिलाया जाए, जिससे आमजन सुरक्षित महसूस कर सकें।
सचिन पारीक
IIMC,NEW DELHI
(File photo)
24 और 25 फरवरी को उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा या यूं कहें कि सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में दिल्ली पुलिस पूरी तरह से नाकाम हुई.अब लगातार विपक्ष और अन्य लोगों द्वारा दिल्ली पुलिस की भूमिका पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं. लगातार एक ही प्रश्न बना हुआ है कि आखिर दिल्ली पुलिस हिंसा क्यों नहीं रोक सकी?
यह पहला मौका नहीं है, जब दिल्ली पुलिस पर प्रश्न उठ रहे है इससे पहले भी कई मौकों पर दिल्ली पुलिस पर सवालिया निशान लग चुके हैं. गौरतलब है कि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी औऱ जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में छात्रों के बीच हुए विभिन्न तनावों औऱ नागरिकता कानून के विरोध में हुई हिंसा पर भी दिल्ली पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है.
(File photo)
5 जनवरी 2020 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कुछ नकाबपोश गुंडों ने छात्र-छात्राओं के हॉस्टल में घुसकर मारपीट की. जिसके कई वीडियो सामने आए, जिसमें बाहर से आए लोग छात्रों के साथ मारपीट करते हुए दिखाई दे रहे हैं. जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष और छात्रों ने बताया कि पुलिस विश्वविद्यालय के मेन गेट पर खड़ी थी और यह सब कुछ पहले से तैयारी करके घटना को अंजाम तक पहुंचाया गया. पुलिस ने कार्रवाई के नाम पर अब तक कुछ नहीं किया है और पुलिस की नाकामी का आलम यह है कि डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी अब तक एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है.
वहीं जामिया मिलिया इस्लामिया के विद्यार्थियों द्वारा संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में प्रदर्शन चल रहा था. जिसमें हिंसा भड़की.पुलिस पर आरोप है कि उन्होंने प्रदर्शन कर रहे, विद्यार्थियों के साथ लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों के साथ भी मारपीट की.
(File photo)
हाल ही में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में अब तक 42 लोगों की मौत हो चुकी है और 300 से ज्यादा लोग घायल है. दिल्ली पुलिस ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि अब तक हमने 126 एफ आई आर दर्ज की है और 630 लोगों को गिरफ्तार किया है आगे भी जांच जारी है और हिंसक तत्वों की पहचान कर उन्हें पकड़ा जा रहा है.
दिल्ली पुलिस की लगातार विफलता का कारण पुलिस का खुफिया विभाग भी है.आखिर खुफिया एजेंसियां इतनी भयानक हिंसा की साजिश का पता लगाने में असफल क्यों रही?लोगों के घरों में एक - एक गाड़ी भरे जितने पत्थर कैसे इक्कट्ठा हो गए? पेट्रोल बम, तेजाब से भरे पॉलिथीन औऱ गुलेल कैसे इक्कट्ठा हो गए? इन सभी सवालों के जबाब खुफिया एजेंसियों को देने होंगे.
इन सभी घटनाओं के सामने आने के बाद दिल्ली पुलिस पर प्रश्न उठता है कि आखिर दिल्ली पुलिस इतनी लेट क्यों हो जाती है?और इतनी ढिलाई से कार्रवाई क्यों होती है? क्या दिल्ली पुलिस की हिंसक तत्वों के साथ कोई मिलीभगत है? या सरकार ने उनके हाथ बांध रखे हैं? अगर ऐसा नहीं है, तो पुलिस को तुरंत कार्रवाई कर समाज को संदेश देना चाहिए कि पुलिस का मोटो अपराधियों में भय और आमजन की सुरक्षा कायम करने का है.
विवादों में रही दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक 29 फरवरी 2020 को रिटायर हो रहे हैं.उनकी जगह अतिरिक्त प्रभार एसएन श्रीवास्तव को दिया गया है.
लगातार उठ रहे दिल्ली पुलिस पर सवालों का जवाब दिल्ली पुलिस को ही देना है.दिल्ली पुलिस कार्रवाई में देरी ना करें ऐसा भी जनता को विश्वास दिलाया जाए, जिससे आमजन सुरक्षित महसूस कर सकें।
सचिन पारीक
IIMC,NEW DELHI
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